प्रथम दिनः पहला नवरात्रा
तारीखः 13th Oct 2015
तिथिः षुक्ल प्रतिपदा।
प्रथम दिन की देवीः- माँ षैलपुत्री।
जो इस ष्लोक से स्पष्ट हैः-
प्रथमं षैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
इन्हें गिरिराज हिमालय की पुत्री या माँ भगवती पार्वती के नाम से जानते हैं। भगवती पार्वती की आराधना व स्मरण से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होते हैं और रोग-बाधाएं समाप्त होती हैं।
चैत्र नवरात्रों का महत्व। इस वर्ष नवरात्रा का पवित्र पर्व 21 मार्च 2015 चैत्र षुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ हो रहा है। अन्योआश्रित जीवन की रीढ़ कृषि व जीवन के आधार प्राणों की रक्षा हेतु इन दोनो ही ऋतुओं मे लहलहाती हुई फसलें खेतों से खलिहान मे आ जाती हैं।
नवरात्रा में माँ भगवती की आराधना अनेक विद्वानों एवं साधकों ने बतायी हैै। किन्तु सबसे प्रामाणिक व श्रेष्ठ आधार “दुर्गा सप्तषती” है। जिसमें सात सौ ष्लोकों के द्वारा भगवती दुर्गा की अर्चना व वंदना की गई है। नवरात्रों में श्रद्धा एवं विष्वास के साथ दुर्गा सप्तषती के ष्लोकों द्वारा माँ-दुर्गा देवी की पूजा नियमित षुद्वता व पवित्रता से की या कराई जाय तो निष्चित रूप से माँ प्रसन्न हो ईष्ट फल प्रदान करती हैं।इस पूजा में पवित्रता, नियम व संयम तथा ब्रह्मचर्य का विषेष महत्त्व है। कलष स्थापना राहुकाल, यमघण्ट काल में नहीं करना चाहिये। इस पूजा के समय घर व देवालय को तोरण व विविध प्रकार के मांगलिक पत्र, पुष्पों से सजा सुन्दर सर्वतोभद्र मण्डल, स्वास्तिक, नवग्रहादि, ओंकार आदि की स्थापना विधवत षास्त्रोक्त विधि से करने या कराने तथा स्थापित समस्त देवी देवताओं का आवाह्न उनके “नाम मंत्रो” द्वारा कर षोडषोपचार पूजा करनी चाहिये जो विषेष फलदायनी है।
नौरात्र में अपेक्षित नियमः-पवित्रता, संयम तथा ब्रह्मचर्य का विषिष्ट महत्त्व है धू्रमपान, मांस, मंदिरा, झूठ, क्रोध, लोभ से बचें। कलष स्थापना राहुकाल, यमघण्ट काल में नहीं करना चाहिए। पूजा के समय ज्योति जो साक्षात् षक्ति का प्रतिरूप है उसे अखण्ड ज्योति के रूप में षुद्ध देषी घी या गाय के घी से प्रज्जवलित कर सर्वतो भद्र मण्डल के अग्निकोण में स्थापित करें। पूजन के पूर्व जौ बोने का विषेष फल होता है। पाठ करते समय बीच में बोलना या फिर बंद करना अच्छा नहीं है, ऐसा करना ही पड़े तो पाठ का आरम्भ पुनः करें। पाठ मध्यम स्वर व सुस्पष्ट, षुद्ध चित्त होकर करें। पाठ संख्या का दषांष हवनादि करने से इच्छित फल प्राप्त होता है। दूर्वा (हरी घास) माँ को नहीं चढ़ाई जाती है। नवरात्रों मे पहले, अंतिम और पूरे नव दिनों का व्रत अपनी सामथ्र्य व क्षमता के अनुसार रखा जा सकता है। नवरात्रों के व्रत का पारण (व्रत खोलना) दषमी मंे करना अच्छा माना गया है, यदि नवमी की वृद्धि हो तो पहली नवमी को उपवास करने के पष्चात् दूसरे 10वें दिन पारण करने का विधान षास्त्रों में मिलता है। नव कन्याओं का पूजन कर उन्हें श्रद्धा विष्वास के साथ सामथ्र्य अनुसार भोजन व दक्षिणा देना अत्यंत षुभ व श्रेष्ठ होता है। इस प्रकार भक्त अपनी षक्ति, धन, ऐष्वर्य व समृद्धि बढ़ाने दुखों से छुटकारा पाने हेतु सर्वषक्ति रूपा माँ दुर्गा की पूजा अर्चना कर जीवन को सफल बना सकते हैं।
नवरात्रा पूजा व संक्षिप्त पाठ विधिः- नवरात्रा में माँ दुर्गा की पूजा-पाठ व व्रत करने से सकल मनोरथ (मनोकामनाएं) सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्रि व्रत पूजा से सौभाग्यवती स्त्रियों को सौभाग्य, सुख संपति, दीर्घायु, पुत्र संतान आदि प्राप्त होते हैं। विवाह योग्य युवक-युवतियों को मनोनुकूल पत्नी/पति की प्राप्त होती है। किसी बाधा या रोग से पीडि़त व्यक्ति को रोग व बाधाओं से छुटकारा मिल जाता है। अर्थात् भगवती की कृपा से कोई वस्तु दुर्लभ नहीं रहती है। इसलिए माँ की पूजा अवष्य ही करनी या किसी ब्राह्मण द्वारा करवानी चाहिए।
नवरात्रि व विषेष अवसरों पर और किसी विषेष लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु दुर्गाषतचण्डी, लक्षचण्डी आदि यज्ञों में विस्तृत ढ़ंग से विद्वान ब्राह्मणों के सहयोग से बड़े अनुष्ठान व जप हवन किए जाते हैं जो जप, यज्ञ की आवष्यकता के अनुसार ही विषम संख्या 5, 7, 9,11, 15,17,21 या अधिक दिनों तक विषम ब्राह्मणों की संख्या के द्वारा षास्त्रोक्त विधि से सम्पन्न किए जाते हैं। जिसमें श्रीगणेष, गौरी, नवग्रह, मातृका, वास्तु, 64योगिनी, सप्तर्षि, क्षेत्रपाल, सप्तचिरंजीव की पूजा, यंत्रस्थ कलष की स्थापना, अखण्ड ज्योति की स्थापना, कुमारी पूजा, नान्दी श्राद्ध, नवदुर्गा पूजा, मंगलवाचन प्राणायाम, न्यास, विषेषाघ्र्य आदि कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।
नवरात्रा व्रत से पहले सम्पूर्ण घर सहित जिस स्थान में पूजा करनी हो पूर्णरूप से षुद्ध कर लें। पूजा के समय मे पहनने वाले वस्त्राभूषण आदि पवित्र व निष्चित कर लें। पूजा के समय काले रंग कपड़े व लेदर की वस्तुएं उपयोग में न लाएं।पूजा की सामग्रीः- रौली, मौली, जनेऊ, सुपारी, पानके पत्ते, लौंग, इलायची, नारियल कच्चा,नारियल सूखा, अक्षत (चावल), गोलागिरी, चीनी बूरा, सुगन्धित धूप, अगरबत्ती, षुद्ध देषी गाय का घी न उपलब्ध होने पर देषी घी, पंचमेवा, पंचपात्र, कलष के लिए सोने, चाँदी, तांबे या मिट्टी का घड़ा, अखण्ड ज्योति हेतु दीया, केसर, श्रृंगार की सामग्री, चुनरी, साड़ी, दूध, दही, षहद, रंग- लाल, पीला, हरा, काला, आदि, पंचरत्न, पंचगब्य जिसके लिए देषी गाय का मूत्र, गोबर, दूध, दही, घी, पंचपल्लव- आम, अषोक, गूलर, पीपल व बरगद सुगन्धित व लाल पुष्प, अष्टगंध, कपूर, जौ, काले तिल, रूई, मीठा जिसमंे वर्क न लगा हो। 5 मीटर सफेद कपड़ा, 5 मीटर लाल कपड़ा, पांच प्रकार के ऋतुफल, ब्राह्मणों के लिए पंच वस्त्र और सोने, चाँदी या ताँबे के पात्र लोटा, गिलास आदि।
जौ बोने के लिए गंगाजी की रेता जो षुद्ध हो या फिर षुद्ध स्थान की मिट्टी, बैठने के लिए आसन जिसमें कपड़ा न लगा हो, ऊनी, रेष्मी, कुष या फिर मृग, बाघ चर्मादि का हो।