दूसरा दिनः दूसरा नवरात्रा
तारीखः 15th Oct 2015
तिथिः षुक्ल द्वितीया।
दूसरे दिन की देवीः- माँ ब्रह्मचारिणी है।
माँ ब्रह्मचारिणी स्वाभाविक रूप से उस परम पिता सच्चिदानन्दमय ईष्वर को प्राप्त करती हैं। इसलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इस दिन माँ की पूजा भक्ति से करने से ब्रह्म रूप ईष्वर की अद्भुत कृपा प्राप्त होती है व ज्ञान बढ़ता है। कष्ट मिट जाते हैं।
माँ का द्वितीय रूप इस ष्लोक से स्पष्ट हैः-
प्रथमं षैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
उपरोक्त षोडषोपचार विधि से पूजा दूसरे दिन भी पूजा की जाती हैं और स्थापित कलष, दीप, और अन्य प्रतिष्ठत वेदियों और देवी प्रतिमा में चढ़ी हुई पूर्व दिन की पूजन सामग्री व पुष्पादि सामग्री उतार ले और उपरोक्त क्रम को दोहराते हुए श्रद्धा, भक्ति पूर्वक हांथ जोड़कर पूजा आराधना का क्रम दोहराएं। और पूजा सम्पन्न होने के बाद प्रसाद आदि वितरित करें।
व्रत या पूजा का प्रारम्भः- प्रातःकाल षौच स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर उपरोक्त पूजा हेतु निष्चित पवित्र वस्त्र धारण कर उपरोक्त पूजन सामग्री व श्रीदुर्गासप्तषती की पुस्तक को ऊँचे व सुन्दर आसन में रखकर षुद्ध आसन मंे पूर्वाविमुख या उत्तराभिमुख होकर प्रसन्नता व भक्तिपूर्वक बैठकर माथे पर चन्दन लगाएं, पवित्र मंत्र बोलते हुए पवित्री करण, आचमन, करन्यासादि करें। इसके बाद श्रीगणेषादि देवताओं, गुरूजनों व ब्रह्मणों को प्रणाम करें।
इसके बाद हाथ में कुष की पवित्री, लालपुष्प, अक्षत, जल, स्वर्ण, चाँदी आदि की मुद्राओं द्वारा पूजा व व्रत का संकल्प लें। फिर षड़ोषपचार विधि से पूजा करें।नोटः- पाठ गलत या अषुद्ध न करें न ही बहुत धीरे न ही बहुत जल्दी अर्थात् मध्यम गति से सुस्पष्ट उच्चारण करते हुए पाठ करना चाहिए। क्योंकि मंत्रों के गलत उच्चारण से पूजा का फल नहीं प्राप्त होता और अनिष्ट की आषंका बनी रहती है। दुर्गासप्तषती व अन्य पूजाकर्म पद्धति की किताबें जो षुद्ध रूप में और किसी प्रमाणित प्रेस आदि से प्रकाषित हो उन्हीं को प्रयोग में लाना चाहिए।
कुछ उपयोगी मंत्र या सम्पुटः-
व्रत में क्रोध, आलस्य, चिंता नहीं करें। प्रसन्न चित्त व उत्साह पूर्वक माँ की पूजा करें। किसी बात में अविष्वास व संदेह न पैदा करें। नित्यादि क्रियाएं षुद्धता पूर्व करें, स्नान में सुगन्धित तेल, साबुन यदि संभव हो तो प्रयोग न करें। ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें, अर्थात् मैथुन आदि क्रियाएं न करें।
स्त्री/पुरूष प्रसंग, हास्य विनोद, अत्याधिक बोलना, जोर से हंसना, गुस्सा करने से बचें। सरल और षांति चित्त होकर व्रत का पालन करें। जल्दी-जल्दी पानी पीना और हर थोड़ी देर में खाने से भी बचें। दिन में सोना नहीं चाहिए, बल्कि कार्यो से निवृत्त होने पर जरूरत के अनुसार थोड़ा विश्राम करना चाहिए।